Shri Krishna Bhagvad Gita Quotes In Hindi – कृष्ण—यह शब्द दिव्य है। कृष्ण का अर्थ है परम आनन्द। हम सभी लोग आनन्द की खोज में हैं, पर हम यह नहीं जानते कि सच्चा आनन्द किस प्रकार खोजा जा सकता है। Gita Quotes In Hindi जीवन के प्रति भौतिकतावादी दृष्टिकोण रखकर, हम अपनी इच्छाओं को पूरा करने में हर पग पर निराशा का सामना करते हैं, क्योंकि जिस वास्तविक स्तर पर पहुंचकर वास्तविक आनन्द प्राप्त होता है, उसकी हमें कोई जानकारी नहीं है।
सच्चा आनन्द प्राप्त करने के लिए सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि हम यह शरीर नहीं हैं, बल्कि चेतना हैं। सिर्फ चेतना ही नहीं क्योंकि चेतना तो हमारी वास्तविक पहचान का लक्षण मात्र है : हम तो विशुद्ध आत्मा हैं, जो इस भौतिक शरीर में प्रविष्ट हो गया है। आधुनिक भौतिक विज्ञान इस बात पर कोई महत्त्व नहीं डालता; इसलिए कभी-कभी वैज्ञानिक आत्मा को समझने में भूल कर बैठते हैं और भ्रमित हो जाते हैं। किन्तु आत्मा एक सत्य है, जिसे चेतना की उपस्थिति के द्वारा कोई भी समझ सकता है।
एक बच्चा भी इस बात को समझ सकता है कि प्राणियों की चेतना आत्मा के अस्तित्व का एक लक्षण है। श्रीमद्भगवद्गीता (श्रीभगवान् का गीत) से हम जो पूरी प्रक्रिया सीखने का प्रयत्न कर रहे हैं, वह यही है कि हम किस प्रकार अपने आपको चेतना के स्तर तक ला सकते हैं। यदि हम चेतना के उस स्तर तक पहुँच गए, तो फिर हमें इस शारीरिक चेतना के स्तर पर वापस नहीं धकेला जा सकता है और इस वर्तमान शरीर के नष्ट होने पर हम भौतिक विकारों से भी मुक्त हो जाएंगे!
Shri Krishna Bhagvad Gita Quotes In Hindi
Shrimad Bhagavad Gita
अध्याय 2 श्लोक 66
नास्ति बुद्धिरयुक्तस्य
न चाभावयतः शान्तिरशान्तस्य कुतः सुखम्॥
न जीते हुए मन और इन्द्रियाँवाले पुरुषमें
निश्चयात्मिका बुद्धि नहीं होती
और उस अयुक्त मनुष्य के अन्त:करणमें भावना भी नहीं होती तथा भावनाहीन मनुष्यको शान्ति नहीं मिलती और
शान्तिरहित मनुष्यको सुख कैसे मिल सकता है?
Shrimad Bhagavad Gita
अध्याय 2 श्लोक 67
इन्द्रियाणां हि चरतां यन्मनोऽनुविधीयते।
तदस्य हरति प्रज्ञां वायु वमिवाम्भसि ॥
क्योंकि जैसे जलमें चलनेवाली नावको वायु हर लेती है, वैसे ही विषयोंमें विचरती हुई इन्द्रियोंमेंसे मन
जिस इन्द्रियके साथ रहता है वह एक ही इन्द्रिय इस
अयुक्त पुरुषकी बुद्धिको हर लेती है।।
Shrimad Bhagavad Gita
अध्याय 2 श्लोक 68
तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वशः।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।
इसलिये हे महाबाहो! जिस पुरुषको इन्द्रियाँ
इन्द्रियोंके विषयोंसे सब प्रकार निग्रह की हुई हैं,
उसीकी बुद्धि स्थिर है।
Shrimad Bhagavad Gita
अध्याय 2 श्लोक 69
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।
यस्यां जाग्रति भूतानिसा निशा पश्यतो मुनेः ।।
सम्पूर्ण प्राणियोंके लिये जो रात्रिके समान है,
उस नित्य ज्ञानस्वरूप परमानन्दकी प्राप्तिमें स्थितप्रज्ञ योगी
जागता है और जिस नाशवान् सांसारिक सुखकी प्राप्तिमें
सब प्राणी जागते हैं, परमात्माके तत्त्वको जाननेवाले
मुनिके लिये वह रात्रिके समान है।
Shrimad Bhagavad Gita
अध्याय 2 श्लोक 71
विहाय कामान्यः सर्वान्युमांश्चरति निःस्पृहः।
निर्ममो निरहङ्कारः स शान्तिमधिगच्छति
जो पुरुष सम्पूर्ण कामनाओंको त्यागकर ममतारहित,
अहंकाररहित और स्पृहारहित हुआ विचरता है, वही
शान्तिको प्राप्त होता है अर्थात् वह शान्तिको प्राप्त है!
Shrimad Bhagavad Gita
अध्याय 2 श्लोक 72
एषा ब्राह्मी स्थितिः पार्थ नैनां प्राप्य विमुह्यति।
स्थित्वास्यामन्तकालेऽपि ब्रह्मनिर्वाणमृच्छति॥
हे अर्जुन ! यह ब्रह्मको प्राप्त हुए पुरुषकी स्थिति
है, इसको प्राप्त होकर योगी कभी मोहित नहीं होता
और अन्तकालमें भी इस ब्राह्मी स्थितिमें स्थित होकर
ब्रह्मानन्दको प्राप्त हो जाता है!